सांचौर का गौरवशाली इतिहास: प्राचीन काल से आधुनिक युग तक | History of Sanchore
सांचौर (Sanchore), पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक प्राचीन शहर है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। लूनी नदी के तट पर बसा यह शहर सदियों से कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का साक्षी रहा है। यह गुजरात राज्य की सीमा पर राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 68 पर स्थित है, दक्षिण सीमा पर गुजरात राज्य, उत्तर-पश्चिम सीमा पर बाड़मेर, पूर्व में रानीवाड़ा तहसील एवं उत्तर-पूर्व में भीनमाल तहसील स्थित है। यह कच्छ की खाड़ी तक फैला है जो दक्षिण-पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा के बहुत निकट है।
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Sanchore Map |
सांचौर, दिल्ली-गुजरात मार्ग पर तथा राजस्थान एवं गुजरात की सीमा पर स्थित होने के कारण व्यापारिक एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता था। सांचौर (Sanchore) को राजस्थान का पंजाब एवं गुजरात-राजस्थान का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
प्राचीन काल एवं मध्य काल में इस परगने को भिन्न-भिन्न नामों सकतीपुर, साचीहर, सच्चरी, सच्चूर, सांचौरू, महमूदाबाद तथा सत्यपुर से पहचाना जाता रहा है। कालान्तर में यह सांचौर नाम से जाना जाता है।
डॉ. हुकमसिंह भाटी के शब्दों में, "यहां का हर पत्थर आस्था और साहस की गाथा कहता है।"
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सांचौर का प्रारंभिक इतिहास (Early History of Sanchore):
सांचौर का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। यह नगर विभिन्न राजवंशों के शासनकाल में महत्वपूर्ण केंद्र रहा। इस पर प्रतिहार, परमार, सोलंकी, दहिया, चौहान, खिलजी, पठान, मुगल और राठौड़ शासकों ने शासन किया।
- सोलंकी शासन:
- गुजरात के सोलंकी राजा मूलराज प्रथम के दान पत्र और भीमदेव द्वितीय के अभिलेखों से पता चलता है कि 10वीं से 12वीं शताब्दी तक इस क्षेत्र पर सोलंकी वंश का शासन था।
- चौहान शासन:
- नैणसी की ख्यात के अनुसार, सोलंकी वंश के बाद, विजयराज दहिया ने सांचौर पर शासन किया। बाद में, नाडोल के आल्हण चौहान के पुत्र विजैसी ने विजयराज दहिया को हराकर सांचौर पर अधिकार कर लिया। विजैसी के बाद पदमसी, शोभ्रम और शाल्हा आदि प्रतापी चौहान शासक हुए।
- सुंधा अभिलेख के अनुसार, 13वीं शताब्दी में जालौर के शासक उदयसिंह चौहान का सांचौर पर अधिकार था।
मध्यकालीन सांचौर (Medieval Sanchore):
- खिलजी वंश (गुलाम वंश और दिल्ली सल्तनत का प्रभाव):
- उदयसिंह के शासनकाल में गुलाम वंशीय नासिरुद्दीन महमूद शाह ने सांचौर पर अधिकार कर जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।
- 14वीं शताब्दी में, अलाउद्दीन खिलजी की सेनाओं ने सांचौर पर आक्रमण किया और इस पर अधिकार कर लिया। यहां के भव्य महावीर मंदिर को नष्ट किया। जैन मुनि जिन प्रभसुरी की कृति "विविध तीर्थकल्प" में इस घटना का उल्लेख मिलता है।
- मुगल काल:
- 16वीं शताब्दी में, मुगल साम्राज्य ने सांचौर पर नियंत्रण स्थापित किया।
- कान्हड़देव के समकालीन शोभ्रम (शाल्हा) के पुत्र हापा चौहान ने पुनः सांचौर पर अधिकार स्थापित किया। हापा के बाद उनके भाई विक्रमसी (विक्रमसिंह) ने सांचौर पर शासन किया, जबकि हापा के वंशजों का प्रभाव सूराचंद और बाड़मेर जूना तक बना रहा।
- वि.सं. 1510 (1453 ई.) के वरजांग अभिलेख के अनुसार, विक्रमसिंह के वंशजों में प्रतापसिंह और वरजांग हुए, जो न केवल वीर योद्धा थे, बल्कि उदार दानदाता और विद्वानों के संरक्षक भी थे।
- वरजांग के पुत्र जैसिंहदे के शासनकाल तक सांचौर पर चौहानों का आधिपत्य बना रहा। इसके बाद सांचौर गुजरात के मुस्लिम शासकों के नियंत्रण में आ गया, और प्रेम मुगल को यहां का प्रशासक नियुक्त किया गया।
- वि.सं. 1699 (1642 ई.) में यहां का प्रतापी शासक राव बल्लू चौहान उर्फ राव बलभद्रसिंह चौहान ने अपनी वीरता से बादशाह शाहजहां को प्रभावित कर सन् 1642 में सांचौर परगना प्राप्त किया।
मारवाड़ रियासत (राठौड़ शासन):
- 18वीं शताब्दी (1698 ई.) में, जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह ने सांचौर पर अधिकार कर लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति तक यह मारवाड़ रियासत का हिस्सा रहा।
- वि.सं. 1755 (1698 ई.) के बाद सांचौर के जागीरदार जोधपुर राज्य की सेवा में रहने लगे। सांचौर के गांव जागीरदारों के पट्टे में रहे। सेसमल के वंशजो के पास चितलवाना ठीकाना रहा।
आधुनिक सांचौर (Modern Sanchore):
राजस्थान के गठन से पूर्व, वर्तमान सांचौर क्षेत्र भूतपूर्व जोधपुर राज्य का परगना था। 30 मार्च 1949 को ग्रेटर राजस्थान के रूप में संयुक्त राज्य बनने के बाद, जिसमें जोधपुर राज्य का भी विलय हुआ, जोधपुर संभाग का गठन किया गया। इसके बाद, राजस्व और प्रशासनिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस संभाग को विभिन्न जिलों और तहसीलों में विभाजित किया गया।
इसी प्रक्रिया के तहत, जालोर को एक जिला बनाया गया और Sanchore को इसकी एक तहसील के रूप में स्थापित किया गया। 28 सितंबर 1954 को, राज्य सरकार द्वारा सांचौर तहसील के 2010.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले 77 गांवों को नवगठित चौहटन तहसील (बाड़मेर जिला) में स्थानांतरित कर दिया गया।
शुरुआत में, भीनमाल और सांचौर मिलकर भीनमाल उपखंड का गठन करते थे, लेकिन वर्तमान में सांचौर परगने का क्षेत्र सांचौर एवं चितलवाना, दोनों उपखंड मुख्यालयों में विभाजित है। आज, यह एक तेजी से विकसित होता सांचौर जो अपनी समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है।
राजस्थान सरकार में श्रम एवं राजस्व राज्यमंत्री सुखराम विश्नोई (Sukhram Bishnoi) के प्रयासों से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 17 मार्च 2023 को सांचौर को जिला बनाने की घोषणा की। यह जिला 7 अगस्त 2023 को जालौर से अलग कर स्थापित किया गया, जिसका कुल क्षेत्रफल 2,996 वर्ग किलोमीटर है। 2011 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 4,87,458 थी। हालाँकि, 28 दिसंबर 2024 को इस जिले को पुनः निरस्त कर दिया गया।
डॉ इन्दु के अनुसार "सांचौर परगने का इतिहास गौरवशाली रहा। लेकिन जागरूकता के अभाव में उचित संरक्षण नहीं किया गया। व्यक्तिगत सर्वे में मैनें पाया है कि कुछ पुरातात्विक साक्ष्यों का जानकारी के अभाव में नष्ट कर दिया गया है। और जो बचे हुए है वो इधर-उधर बिखरें पड़े है। उन्हें संरक्षण की महती आवश्यकता है।"
सांचौर जिले की भौगोलिक एवं प्रशासनिक जानकारी (Geographical and administrative information of Sanchore district):
- घोषणा: 17 मार्च 2023
- मंत्रिमंडल स्वीकृति: 4 अगस्त 2023
- अधिसूचना जारी: 6 अगस्त 2023
- स्थापना दिवस: 7 अगस्त 2023
- प्रथम कलेक्टर: पूजा पार्थ
- प्रथम पुलिस अधीक्षक: सागर
- संभाग: पाली
- सीमा: बाड़मेर, बालोतरा, जालौर, सिरोही
- विधानसभा सीटें: 2 (सांचौर, रानीवाड़ा)
- अंतर्राज्यीय सीमा: गुजरात से सटी हुई
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सांचौर जिले के प्रमुख स्थल व विशेषताएँ (Major places and features of Sanchore district):
- चितलवाना: रणखार कंजर्वेशन जोन, चितलवाना बाँध
- सांचौर: गोगाजी की ओल्डी, राष्ट्रीय कामधेनु विश्वविद्यालय
- रानीवाड़ा: राजस्थान की सबसे बड़ी दूध डेयरी, सेवडिया पशु मेला
सांचौर जिले की तहसीलें एवं उपखंड मुख्यालय (Tehsils and subdivision headquarters of Sanchore district):
- सांचौर - सांचौर
- चितलवाना - चितलवाना
- बागोडा - बागोडा
- रानीवाड़ा - रानीवाड़ा
सांचौर जिले की नदियाँ एवं जल स्रोत (Rivers and water sources of Sanchore district):
- लूनी नदी: अजमेर, नागौर, ब्यावर, जोधपुर, बाड़मेर, बालोतरा, सांचौर से प्रवाहित
- सांचौर में लूनी नदी के प्रवाह क्षेत्र को नेहड़ कहा जाता है।
- नर्मदा नहर परियोजना: 27 मार्च 2008 को प्रारंभ, सरदार सरोवर बाँध (गुजरात) से निकाली गई।
सांचौर जिले के प्रमुख परिवहन मार्ग (Major transport routes of Sanchore district):
- भारतमाला परियोजना एवं संगरिया-सांचौर-सांतालपुर ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे सांचौर से गुजरता है।
- भारत का प्रथम आपातकालीन लैंडिंग हाईवे (NH-925A) और राष्ट्रीय राजमार्ग 68 यहाँ से गुजरता है।
सांचौर जिले में कृषि एवं खनिज (Agriculture and Minerals in Sanchore District):
- मुख्य फसलें: ईसबगोल (घोड़ा जीरा) और जीरा
- खनिज: बाड़मेर-सांचौर तेल बेसिन, राजस्थान का सर्वाधिक तेल उत्पादन क्षेत्र
सांचौर जिले में पशुपालन एवं उद्योग (Animal husbandry and industry in Sanchore district):
- सांचौरी व कांकरेज गौवंश प्रसिद्ध
- पथमेडा गौशाला: भारत की सबसे बड़ी गौशाला और राज्य का पहला गौमूत्र बैंक
- उद्योग: स्टील व फर्नीचर उद्योग
सांचौर जिले में धार्मिक व सांस्कृतिक स्थल (Religious and cultural places in Sanchore district):
- बड़गाँव (रानीवाड़ा) को 'सांचौर का कश्मीर' कहा जाता है।
- अब्बनशाह मकदूम पीर की दरगाह स्थित है।
- बाबा रघुनाथपुरी पशु मेला (चैत्र शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक) लगता है। सांचौर का ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्त्व इसे एक विशिष्ट पहचान प्रदान करता है।
28 दिसंबर 2024 (शनिवार) को कैबिनेट बैठक में भजनलाल सरकार ने गहलोत सरकार के कार्यकाल में बनाए गए 17 नए जिलों में से 9 जिलों और 3 संभागों (पाली, सीकर, बांसवाड़ा) को समाप्त करने का निर्णय लिया। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने सांचौर को जिला घोषित किया था, लेकिन इस बैठक में इसे भी समाप्त कर दिया गया। इसके विरोध में स्थानीय लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया, जो अब तक लगातार जारी है।
सांचौर की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत (Cultural and religious heritage of Sanchore):
सांचौर जैन धर्म और शैव मत का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सांचौर में कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनमें सेवाड़ा का पातालेश्वर शिव मंदिर (Pataleshwar Shiv Mandir, Siwara) और महावीर स्वामी का जैन मंदिर प्रमुख हैं।
सांचौर,दिल्ली और गुजरात के मार्ग पर स्थित होने के कारण कई मुस्लिम आक्रमणों का शिकार हुआ। यहां वायेश्वर नामक भव्य मंदिर (Vayeshwar Mandir, Sanchore) के प्रमाण मिलते हैं, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने नष्ट कर दिया था।
सेवाड़ा का पातालेश्वर शिव मंदिर (Pataleshwar Shiv Mandir, Siwara), जो सातवीं-आठवीं शताब्दी का माना जाता है, प्राचीन स्थापत्य और मूर्तिकला की उत्कृष्टता का प्रतीक है। इस मंदिर को भी अलाउद्दीन खिलजी और महमूद गजनवी द्वारा विध्वंसित किया गया था।
- साहित्य: सांचौर प्राचीन काल से ही साहित्यकारों की भूमि रही है। महाकवि धनपाल, समयसुंदर और हीरानंद सूरी (Mahakavi Dhanpal, Samaysundar and Hiranand Suri) जैसे प्रसिद्ध कवियों ने यहाँ रहकर कई महत्वपूर्ण रचनाएँ कीं।
- सांचौर में प्राचीन समय से ही धार्मिक विश्वास वाले लोगो का आधिक्य रहा है यहां पर कई वैष्णव, शिव, देवी मंदिरों का निर्माण करवाया था जिनके उदाहरण सेवाड़ा का पातालेश्वर शिव मंदिर, वायेश्वर शिव मंदिर, गोलासन हनुमानजी का मंदिर, सिद्देश्वर महादेव मंदिर, सिद्देश्वर दक्षियाणी मंदिर, खासरवी माता का मंदिर आदि के रूप में देखे जा सकते है।